कविताओं में चुटकियाँ
अभिमान पर कविता
बड़े यहाँ पर राम कहें, छोटे दें आशीष।
कैसी विपदा आन पड़ी, धरती पर जगदीश।
महेश कुमार हरियाणवी
युवा दिवस पर व्यंग्य
युवा दिवस पर, पढ़े लिखे क्या ही उखाड़ लेते हैं।
हर जगह अनपढ़, अपनी मस्ती में दहाड़ लेते हैं।
नाश कर रहे, धर्म के नाम देश की संपत्ति का।
शिक्षा के पोस्टर, इनके गुलाम चमचे फाड़ लेते हैं।
डॉ विनोद कुमार शकुचंद्र
आरक्षण का पोस्टमार्टम
कलंक है कोई या वरदान है आरक्षण,
शायद भारत की पहचान है आरक्षण।
डॉ विनोद कुमार शकुचंद्र
शिक्षित ज्ञान पर व्यंग्य
देख-देख सब बहरे हो गए, जीवन पर भी पहरे हो गए।
चमक चाँदनी ऐसे तण गई, साँसे आप खिलौना बनगई।
महेश कुमार हरियाणवी
वसंत के लाड़
नंदन वन, कानन, उपवन में, नायिका व नायक आलाप।
स्पंदन प्राण में बासंती, रति कामदेव का है मिलाप।।
सागर सी हिलोरें मन में भरे, और सबसे नज़र बचाकर के।
चूमती है नभ को यह धरती, कहीं दूर अंतरिक्ष जाकर के।।
प्राणेंद्र नाथ मिश्र
यही पहचान है कलम की, ये हर लम्हां जीती है।
कहीं दुख तो कहीं सुख की, घूँट खुशी से पीती है।
महेश कुमार हरियाणवी
मिट्टी में मिल गया है सोना किसान तेरा
देखा नहीं है जाता, रोना किसान तेरा।
कुछ आग ने जलाया, बारिश ने कुछ बहाया
बर्बाद हो गया सब, बोना किसान तेरा।
ये हाड़-तोड़ मेहनत, कैसे मैं भूल जाऊं
मिट्टी के संग मिट्टी होना किसान तेरा।
खाली हैं हाथ तेरे आंखे मगर भरी हैं
मुझको रुला गया है, रोना किसान तेरा।
अशोक मलंग
***
Social Plugin