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विकास अज्ञातवास में: एक सुंदर हिंदी व्यंग्य कविता

व्यंग्य रचना | हिंदी कविता | राजनैतिक व्यंग्य | राजनीति पर कविता | महंगाई पर कविता | विश्वम्भर दयाल अवस्थी





विकास अज्ञातवास में 


पुत्र के चक्कर में,
पाँच पुत्री आ गयीं।
यह माजरा देख,
बुद्धि ही चकरा गयी।।

नोटबंदी, जीएसटी,
मंहगाई खा गयी।
मंदी और बेरोजगारी,
दुनियां में छा गयी।।

आज हर मानव ने,
खाना नहीं खाया है।
तन ढकने को भी,
वस्त्र नहीं पाया है।।

भोला- भाला मानव,
पड़ गया रफद्दर में।
विकास न पैदा हुआ,
फँस गया खद्दर में।।

विकास यहाँ आओ,
अपना चेहरा दिखाओ।
अधिक न तरसाओ,
आकर कुछ तो बताओ।।

आखिर क्यों तूने ये,
अज्ञातवास पाया है।
क्यों तू चिराग बनकर,
आज तक नहीं आया है।।

मृत्युलोक भी चिंतित है,
बात बहुत ही अजीब है।
पाँचवी साल में लगता,
हर सपना सजीव है।।

चार साल तक तो जन को,
कोई भी नहीं आस है।
आखिरी साल ही सबको,
लगती सदा ही खास है।।

बायदा पहले भी किया,
करता भी रहूँगा सदा।
जिताओगे मुझे ही तुम,
मिलेगी नौकरी संविदा।।


कवि:
डॉ. विश्वम्भर दयाल अवस्थी
खुर्जा, बुलंदशहर, उतर प्रदेस



***




विषय विशेष:


यह कविता वर्तमान समय की समस्याओं और सरकार की नीतियों पर कटाक्ष करती है। कवि ने नोटबंदी, जीएसटी, मंहगाई, मंदी और बेरोजगारी जैसी समस्याओं का उल्लेख किया है और कहा है कि इन समस्याओं ने आम आदमी की जिंदगी को बहुत प्रभावित किया है।

कवि ने "विकास" की अवधारणा पर भी सवाल उठाया है और कहा है कि विकास का वादा करने वाले लोग खुद अज्ञातवास में चले गए हैं और आम आदमी को कोई फायदा नहीं हुआ है।

कविता में कवि ने सरकार की नीतियों की आलोचना की है और कहा है कि आम आदमी को न्याय नहीं मिल रहा है। कविता का अंतिम भाग सरकार को घेरने और जवाबदेही की मांग करने के बारे में है।

कुल मिलाकर, यह कविता एक सामाजिक और राजनीतिक टिप्पणी है जो वर्तमान समय की समस्याओं और सरकार की नीतियों पर सवाल उठाती है।




काव्य विश्लेषण:

कविता का मुख्य विषय वर्तमान समय की समस्याओं और सरकार की नीतियों की आलोचना है।

प्रतीकवाद
कविता में "विकास" एक प्रतीक है जो सरकार या सत्ता का प्रतिनिधित्व करता है। "पुत्र" और "पुत्री" संभवतः सरकारी योजनाओं और उनके परिणामों को दर्शाते हैं।

समस्याओं का उल्लेख
कविता में नोटबंदी, जीएसटी, मंहगाई, मंदी और बेरोजगारी जैसी समस्याओं का उल्लेख किया गया है, जो आम आदमी की जिंदगी को प्रभावित करती हैं।

आलोचना:
कविता में सरकार की नीतियों की आलोचना की गई है और कहा गया है कि आम आदमी को न्याय नहीं मिल रहा है। कवि ने सरकार को घेरने और जवाबदेही की मांग करने के बारे में लिखा है।

व्यंग्य:
कविता में व्यंग्य का उपयोग किया गया है, जैसे कि "विकास न पैदा हुआ, फँस गया खद्दर में" और "जिताओगे मुझे ही तुम, मिलेगी नौकरी संविदा"।

आशा और अपेक्षा:
कविता के अंतिम भाग में कवि ने सरकार से अपेक्षा की है कि वह अपने वादों को पूरा करे और आम आदमी की समस्याओं का समाधान करे।

कवि का संदेश:
कविता का संदेश यह है कि सरकार को आम आदमी की समस्याओं का समाधान करना चाहिए और अपने वादों को पूरा करना चाहिए।


सार्वजनिक निवेदन:
यह कविता किसी भी प्रकार से जाति, धर्म या लिंक के आधार पर भेदभाव का समर्थन नहीं करती है। हमारा आप सब से निवेदन है कि कानून के साथ-साथ मानवता का सम्मान करें।