बेदर्दी
बेदर्दी तैने ज़ुल्म करे, कोए लाज-शर्म ना छोड़ी।
बण कै निष्ठुर बैठ गया, मर्यादा रिश्तों की तोड़ी।।
दया धर्म की बात रही ना, बड़े-छोटे की कद्र कहीं।
नस-नस मैं बसा स्वार्थ, दिल मैं किसे कै सब्र नहीं।।
आदर-भाव नहीं रहे, या बिछड़ी प्यार की जोड़ी।
बेदर्दी तैने ज़ुल्म करे, कोए लाज-शर्म ना छोड़ी।।
किसकी आस करूँ मैं, कोए मददगार ना दिखै।
लुट-खसोट तै धन कमा, साहूकार बणणा सीखै।।
बेरहम बणणा सीखै, माँ-बाप की किस्मत फोड़ी।
बेदर्दी तैने ज़ुल्म करे, कोए लाज-शर्म ना छोड़ी।।
घर-परिवार देस की इज़्ज़त, निष्ठुर ना कदे करते।
विषमता व तनाव बढ़ावै, ज़हर समाज मैं भरते।।
प्रतिष्ठा खराब करते म्हारी, ये दे-दे इसी मरोड़ी।
बेदर्दी तैने ज़ुल्म करे, कोए लाज-शर्म ना छोड़ी।।
मान करो सम्मान करो, सब नै समझो आपणा।
ग़लत बात ना सोचो मन मैं, छोड़ देओ ताकणा।।
दूसरों कै घर ना झांकणा, निर्मल बात निगोड़ी।
बेदर्दी तैने ज़ुल्म करे, कोए लाज-शर्म ना छोड़ी।।
वरिष्ठ कवि:
डॉ देवीराम शर्मा निर्मल
धारूहेड़ा, रेवाड़ी, हरियाणा
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विषय विश्लेषण:
यह कविता डॉ देवीराम शर्मा द्वारा लिखी गई है, जो हरियाणवी भाषा में है। इस लोकप्रचलित हरियाणवी कविता का मुख्य विषय बेदर्दी और निष्ठुरता है।
निष्ठुरता का अर्थ: क्रूरता, कठोरता, बेरहमी
कविता में कवि ने निष्ठुरता के परिणामों को बताया है, जैसे कि रिश्तों को तोड़ना, मर्यादा को भंग करना, और दया और धर्म की बातों को भूल जाना। कवि ने यह भी कहा है कि निष्ठुरता से समाज में विषमता और तनाव बढ़ता है।
कविता के माध्यम से कवि ने लोगों से अपील की है कि वे एक दूसरे का सम्मान करें, और निष्ठुरता को त्याग दें। कवि ने यह भी कहा है कि हमें अपने घर-परिवार और समाज की इज्जत को बनाए रखने के लिए निष्ठुरता को त्यागना ही होगा।
कविता की भाषा हरियाणवी लोकगीत के तौर पर बिल्कुल सरल, मिट्टी और स्पष्ट है, जो कवि के विचारों को पूर्ण रूप से व्यक्त करती है। कविता का मुख्य उद्देश्य लोगों को निष्ठुरता के परिणामों के बारे में जागरूक करना और उन्हें एक दूसरे का सम्मान करने के लिए प्रेरित करना है।
हम सब जानते है कि हरियाणा अपनी चटपटी भाषा, प्रेम और सामाजिक भाईचारे के लिए दुनिया के सामने एक मिसाल कायम करता है।
इस कविता के अंत में एक महत्वपूर्ण संदेश छुपा हुआ है जो हमें अपने जीवन में निष्ठुरता को त्यागने और एक दूसरे का सम्मान करने के लिए प्रेरित करती है।
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