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पीड़ा पर कविता: Pida par शायरी हो या कविता, दोनों ही मानवीय वेदना का भेद खोलती है।

पीड़ा पर कविता | वीर छंद | आल्हा छंद | हिन्दी कविता |परभूपग धूल |Hindi Kavita

Pida par kavita


पीड़ा की वेदना

झूल-गयी बेटी फाँसी पर,
छेड़-छाड़ से होकर तंग।
क्षेत्र-मौदहा की घटना ने,
किया-राष्ट्र का धूमिल रंग।

शोक-भरी है भारत माता,
हार-गयी है सबला जंग।।
कौन-करे बेटी की रक्षा, 
लगते हैं घनश्याम-अपंग।।


टूट-रहा है धीरज मेरा,
सूख-गया नैनों का नीर।
हृदय-धड़कता है बादल सा,
रही-वेदना सीना चीर।।

लुटी द्रोपदी बीच-सभा में,
किधर-छुपे मोहन बेपीर।
दैत्य लूटते लाज-सिया की,
किधर-गये हनुमत बलवीर।।


लिखे सत्यता कौन-धुरंधर,
दैत्य-कलम पर करते वार।
घनी-नींद में राजा सोते,
बढ़ा-राष्ट्र में भ्रष्टाचार।।

नहीं सत्यता दिखती नृप-को,
हाल-देखता है संसार।
चीख-रही है धरनी माता,
बढ़ा-भूमि पे भारी भार।।

कवि:
प्रभुपग धूल
8840923501

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विषय भेद:

वेदना एक ऐसी भावना है जो किसी को भी बहुत दर्द और पीड़ा पहुँचा सकती है। यह एक ऐसी स्थिति है जब कोई व्यक्ति अपने जीवन में बहुत अधिक मानसिक और शारीरिक पीड़ा का अनुभव करता है।

नर, नारी, बेटा और बेटियों के लिए वेदना का अर्थ बहुत व्यापक हो सकता है। यह उनके जीवन में होने वाली कई तरह की पीड़ाओं और दर्द को दर्शाता है।

मानवता का यही दायित्व है कि हम सब मिलकर एक वेदना मुक्त समाज का निर्माण करें, जिसमें यथासंभव कष्टों को कम से कम कर, खुशियों की फसल को लहराया जा सके। 

वास्तविकता की डोर तो परम्- ईश्वर के हाथ में सुरक्षित है लेकिन मानव का धर्म प्रयास करना है। इसलिए वेदना को कम करने का प्रयास हमेशा ही होता रहना चाहिए।

पीड़ा पर कविता, हमें, हमारी सोच को बदलने के लिए प्रेरित करती है ताकि धर्म और कर्म मिलकर, एक सुरक्षित और समर्थनकारी वातावरण बनाएं, जिसमें सभी प्राणियों के खुशहाल जीवन की प्राप्ति, की कल्पना, यथार्थ में संभव हो सके।

मानवीय पीड़ा एक ऐसी भावना है जो मानव जीवन का एक अभिन्न अंग है। यह पीड़ा कई रूपों में हो सकती है, जैसे कि:

शारीरिक पीड़ा
शारीरिक पीड़ा वह पीड़ा है जो हमें शारीरिक रूप से महसूस होती है, जैसे कि दर्द, चोट, या बीमारी।

मानसिक पीड़ा
मानसिक पीड़ा वह पीड़ा है जो हमें मानसिक रूप से महसूस होती है, जैसे कि तनाव, चिंता, या अवसाद।

भावनात्मक पीड़ा
भावनात्मक पीड़ा वह पीड़ा है जो हमें भावनात्मक रूप से महसूस होती है, जैसे कि दुख, शोक, या अकेलापन।

सामाजिक पीड़ा
सामाजिक पीड़ा वह पीड़ा है जो हमें सामाजिक रूप से महसूस होती है, जैसे कि अलगाव, अस्वीकृति, या भेदभाव।

मानवीय पीड़ा को कम करने के लिए, हमें निम्नलिखित कदम उठाने होंगे:

समर्थन और सहायता
हमें पीड़ित व्यक्ति को समर्थन और सहायता प्रदान करनी होगी।

सुनना और समझना
हमें पीड़ित व्यक्ति की बात सुननी होगी और उनकी भावनाओं को समझना होगा।

सहानुभूति और करुणा
हमें पीड़ित व्यक्ति के प्रति सहानुभूति और करुणा दिखानी होगी।

समाधान खोजना
हमें पीड़ित व्यक्ति की समस्या का समाधान खोजने में मदद करनी होगी।