उसकी मर्जी
खामखां, तेरे दिल में वहम, पल रहा है।
जबकि, सब उसकी मर्जी से चल रहा है।।
ढूंढ रहे थे जिसे, हम पत्थरों में कहीं।
वो तो दिल के कूचे से निकल रहा है।।
जिस को चुन लिया, पासबाँ हमने।
कमबख्त, हमको वो ही छल रहा है।।
धर्म और मज़हब का धंधा है उसका।
इंसानियत को वो यूं ही कुचल रहा है।।
सोच रहा है, उसका घर बच जाएगा।
बहका के सबको वो संभल रहा है।।
घर की किस्मत, गली ने लील ली है।
अकेलापन, रिश्तों को बदल रहा है।।
देख रहा है कोई, सनदें पलट पलट के।
रोज़गार जैसे, जुमलों सा पिंघल रहा है।।
रंगो में बात दिया है, बेवकूफों ने हमें।
धर्म के नाम हर रंग यहां, जल रहा है।।
वो एक अनपढ़, जो बैठा है सिंहासन पे।
उसका, खुद का घर, पल पल गल रहा है।।
डॉ विनोद कुमार शकुचंद्र
रोहतक, हरियाणा
***
विषय विश्लेषण:
यह एक दिलचस्प और गहरा कविता है जो समाज में व्याप्त कई गहरी समस्याओं पर प्रकाश डालती है। इसमें धर्म, मज़हब, और राजनीति के मुद्दों को मुख्यतौर पर उठाया गया है, और यह दिखाया गया है कि कैसे ये समस्याएं समाज को लगातार कमजोर करते हुए, लोगों को भ्रमित कर रही हैं।
कविता में यह भी कहा गया है कि लोगों को अपने असली दुश्मनों को पहचानने में परेशानी होती है, और वे अक्सर गलत लोगों पर विश्वास करते हैं। यह एक महत्वपूर्ण संदेश है जो लोगों को अपने आसपास की दुनिया को अधिक सावधानी से देखने और अपने निर्णयों के पीछे के तर्कों को समझने के लिए प्रेरित करता है।
इस कविता के मुख्य विषयों और संदेशों को बहुत स्पष्ट रूप से समझाया है। कविता में कवि ने लोगों को अपने आसपास की दुनिया को अधिक सावधानी से देखने और अपने निर्णयों के पीछे के तर्कों को समझने के लिए प्रेरित भी किया है, जो बहुत महत्वपूर्ण है।
कुल मिलाकर, आपका विश्लेषण बहुत अच्छा है और कविता के मुख्य विषयों और संदेशों को बहुत स्पष्ट रूप से समझाता है।
अतः यह कविता एक शक्तिशाली और प्रेरक संदेश देती है जो लोगों को अपने समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए प्रेरित करती है।
Social Plugin