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जगत जननी: महिला सम्मान पर कविता in Haryanvi

हरियाणवी कविता | महिला सम्मान पर कविता | नारी सम्मान पर कविता | अशोक मलंग की कविता | जननी पर कविता


Haryana sahitya
हरियाणवी कविता


जगत जणनी शक्ति सै, 
ना माल बताओ औरत नै।
थोड़ा सा थाम उठण खातर, 
ना इतना गिराओ औरत नै।।


गोली चालै कोर्ट म्ह और 
बिछै खटोले थाणयां मै।
नंगा नाच और गुंडागर्दी, 
रहगी सै बस गाणयां मै।।

मां बाहण भी औरत सै,
ना न्यू बिसराओ औरत नै।
थोड़ा सा थाम उठण खातर, 
ना इतना गिराओ औरत नै।।

Haryana sahitya


कहदे कौण करतूत मर्द की,
चालै किस्से औरत के।
कानून त्याग बुराई सारी,
आई हिस्से औरत के।

सीले पानी बरगी सीरत, 
ना हॉट बताओ औरत नै।
थोड़ा सा थाम उठण खातर...


मां का लाडला अशोक ठरी,
आज घणा शर्मिंदा सै।
क्यूकर लिखदयूं खांड की बोरी,
जमीर मेरा इबे जिंदा सै।

कामयाबी की मोहर खातर,
ना मोहरा बणाओ औरत नै।
थोड़ा सा थाम उठण खातर, 
ना इतना गिराओ औरत नै।।

जगत जणनी शक्ति सै, 
ना माल बताओ औरत नै।
थोड़ा सा थाम उठण खातर, 
ना इतना गिराओ औरत नै।

कवि:
अशोक मलंग                               
असंध, करनाल, हरियाणा।
9053759637

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जगत जननी, यह बहुत ही सुंदर और प्रेरक कविता है जो महिलाओं के सम्मान के साथ-साथ नारी शक्ति को दर्शाती है। यह कविता महिलाओं के प्रति सम्मान और आदर की भावना को बढ़ावा देती है और उन्हें उनके अधिकारों और शक्ति के बारे में जागरूक करती है।

हरियाणवी कविता 'नारी जननी' मूलतः महिलाओं के प्रति होने वाले अत्याचारों और भेदभाव के खिलाफ भी आवाज़ उठाती है और उनके साथ, सम्मान और आदर के साथ व्यवहार करने की अपील करती है।

इस प्रकार से यह कहाँ जा सकता हैं यह बहुत ही सुंदर, और प्रेरक कविता है।

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