1- महाकुंभ पर कुंडलियाँ
पावन पवित्र प्रयाग में, बजने लागे साज।
महाकुंभ के पर्व का, भव्य हुआ आगाज।।
भव्य हुआ आगाज, शंखो की गूंजी ध्वनी।
उमड़ा जन सैलाब, झूमने लागी अवनी।।
कहे सुशीला शील, दृश्य अद्भुत मनभावन।
संतो के प्रताप से, हो गई नगरी पावन।।
सुशीला यादव गुरुग्राम
2- महाकुंभ पर कुण्डलिया
महाकुंभ प्रयाग में, लगी हुई है भीड़।
नित बढ़ती ही जा रही, मिलती नहीं उछीड़।।
मिलती नहीं उछीड़, उमड़ पड़े श्रद्धालु गण।
धन्य हुआ प्रयाग, हो गया पावन कण कण।।
कहे सुशीला शील, महीना माघ बहुत शुभ।
अभीभूत है देश, रचाकर बड़ा महाकुंभ।।
सुशीला यादव गुरुग्राम
3- देखा देखी पर कुण्डलिया
देखा देखी कर रहे, एक दूजे की होड।
रीत विदेशी मान के, मर्यादा रहे तोड़।।
मर्यादा रहे तोड़, समझ कुछ आवे नाही।
अपना रस्ता छोड़, चले पश्चिम की राही।।
कहे सुशीला शील , दिखा रहे अपनी शेखी।
चले बेढंगी की चाल हो रही देखा देखी।।
सुशीला यादव गुरुग्राम
4- बिन मौसम बरसात पर कुण्डलिया
बिन मौसम बरसात ने, जीना किया मुहाल।
मचा रही बेकार में, आकर रोज धमाल।।
आकर रोज धमाल, फसल चौपट कर दीन्ही।
हलधर करे पुकार, परीक्षा कैसी लीन्ही।।
कहे सुशीला शील, दुआ मांगे वो छिन-छिन।
रहम करो भगवान, मरेगें भूखे अन्न बिन।।
सुशीला यादव गुरुग्राम
5- श्री गणेश पर कुण्डलिया
मोदी जी ने कर दिया, संसद श्री गणेश।
ऐतिहासिक पल साक्षी, गोराविन्त है देश।।
गोराविन्त है देश, अमूल्य निधि है पाई।
विपक्ष हुआ नाराज, रास ना उनको आई।।
कहे शील कविराय, राम दे इनको सोधी।
सबका साथ विकास, कह रहा खुल के मोदी।।
सुशीला यादव गुरुग्राम
6- मानसून पर कुण्डलिया
खूब धमाके से हुआ, मॉनसून आगाज।
खग पंछी भरने लगे, खुश होकर परवाज।।
खुश होकर परवाज, बदरिया घिर घिर आये।
घन घन गरजे मेघ, छनन छन जल बरसाये।।
कहे शील कविराय, के घर आओ महबूब।
सावन की रुत आई, करेंगे मस्ती खूब।।
सुशीला यादव गुरुग्राम
7- महंगाई पर कुण्डलिया
महंगाई की मार से, जीना हुआ मुहाल।
अब तो मुश्किल हो गया, खाना रोटी दाल।।
खाना रोटी दाल, करे क्या आम आदमी।
कीजै कोय उपाय, नियंत्रण बड़ा लाजमी।।
कह शील कविराय, मची हर तरफ दुहाई।
दिन दिन बढ़ती जाय, हाय जालिम महंगाई।।
सुशीला यादव गुरुग्राम
8- चंद्रशेखर आजाद पर कुण्डलिया
शूरवीर रणधीर था, था भारत की शान।
ऐसे योद्धा वीर पर, है हमको अभिमान।।
है हमको अभिमान, नाम आजाद कहाया।
बन गौरों का काल, कहर उन पर बरपाया।।
कहशील कविराय, था ऐसा वो बलकीर।
पैदा हुआ ना होय, चंद्रशेखर सा वीर।।
सुशीला यादव गुरुग्राम
9- सोच पर कुण्डलिया
सोच समझ जो लिख रहे, हिंसा की तहरीर।
जाति धर्म के नाम पर, बांटे जख्म औ पीर।।
बांटे जख्म औ पीर, बेवजह खून बहाये।
ऐसे निर्लज लोग, देशद्रोही कहलाये।।
कहे सुशीला शील, देश को रहे जो नोच।
करो देश से बाहर, है गंदी जिनकी सोच।।
सुशीला यादव गुरुग्राम
10- इतिहास पर कुण्डलिया
भारत रचने को खड़ा, बड़ा नया इतिहास।
विक्रम लैंडर पर हमें, है पूर्ण विश्वास।।
है पूर्ण विश्वास, देख ले दुनिया सारी।
चंद कदम बस दूर, सुनिश्चत जीत हमारी।।
कहे सुशीला शील, करेंगे वंदन आरत।
विश्वगुरु बन जाय, हमारा प्यारा भारत।।
सुशीला यादव गुरुग्राम
11- नए इतिहास पर कुण्डलिया
रोज नया इतिहास लिख, भारत बना महान।
चंद्रयान के बाद अब, छोड़ा सूर्यायान।
छोड़ा सूर्यायान, उपलब्धि बड़ी कमाई।
चांद सूरज पर पहुंच, विश्व में धाक जमाई।।
कहे सुशीला शील, हुई उस रब की मौज।
नित्य-नये इतिहास, गढ़ रहा भारत रोज।।
12-शिक्षक पर कुण्डलिया
सुंदर स्वस्थ समाज का, जो करते निर्माण।
करते दूर अज्ञानता, मार ज्ञान का बाण।।
मार ज्ञान का बाण, सोया विवेक जगाते।
अंतस भर प्रकाश, ज्ञान का दीप जलाते।।
कहे सुशीला शील, ज्ञान के अखुट समंदर।
शिक्षक देश का मान , भविष्य बनाते सुंदर।।
सुशीला यादव गुरुग्राम
13- प्रदूषण पर कुंडलियाँ
प्रदूषण के जहर से जनजीवन बदहाल।
दिल्ली एनसीआर में जीना हुआ मुहाल।।
जीना हुआ मुहाल, श्वास लेना भी भारी।
धुआं धुआं आकाश, चढ़ी ज्यो चादर कारी।।
कहे सुशीला शील, घोट रहा दम प्रतिक्षण।
दिन दिन बढ़ता जाय, जानलेवा प्रदूषण।।
कवयित्री:
सुशीला यादव
गुरुग्राम, हरियाणा
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कुंडलिया छंद एक मित्रित छंद है। हिंदी भाषा के तो चर्चित विषम मात्रिक छंद, दोहा और रोला मिलकर कुंडलियाँ छंद बनाते हैं। कुण्डली का प्रारंभ जिस शब्दसमूह से होता है, अंत भी उसी शब्द के समूह से होता है।
कुंडलिया छंद में आने वाले रोला छंद के अंत में दो गुरु व चार लघु, एक गुरु दो लघु या फिर दो लघु एक गुरु का आना आवश्यक माना भी जाता है।
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