सिलसिला एक ग़ज़ल
राह जब साथ काफ़िला होगा।
रोज़ चलना ही सिलसिला होगा।
जान पहचान कुछ रही होगी,
इसलिए आज़ वो मिला होगा।
वो लुभायेगा ही नज़र सबकी,
फूल जो बाग़ में खिला होगा।
पास थोड़ी हवा चली होगी ,
कोई पत्ता जहाँ हिला होगा।
शक़, शिक़ायत, ख़ता, ग़िला कोई,
और क्या आपका सिला होगा।
कवि:
नवीन माथुर पंचोली
अमझेरा धार मप्र
पिन 454441
मो9893119724
बातों पर ग़ज़ल
मन में रोज़ पला करती हैं।
बातें ख़ूब चला करती हैं।
सच्ची सब लगती हैं अच्छी,
बातें झूठ ख़ला करती हैं।
काम वही, अपनाई जाती,
सब बेक़ाम टला करती हैं।
दो लब, एक ज़ुबाँ के जरिये,
रुतबे ख़ूब फला करती हैं।
सीख, शिकायत, डाट, हिदायत,
बातें रूप ढला करती हैं।
झील, दरिया ,समन्दर हुए।
चल पड़े तो बवण्डर हुए।
कवि:
नवीन माथुर पंचोली
अमझेरा धार मप्र
पिन 454441
मो9893119724
आज के सिकंदर ग़ज़ल
चाँद, सूरज, सितारे वहाँ,
आँख से दूर मंज़र हुए।
सीखते-सीखते काम हर,
लोग कितने धुरन्धर हुए।
रौब वाले सियासी यहाँ,
आज जैसे सिकन्दर हुए।
आँख भेदी न टूटा धनुष ,
इम्तिहाँ बिन, स्वयंवर हुए।
कवि:
नवीन माथुर पंचोली
अमझेरा धार मप्र
पिन 454441
मो9893119724
बावरा मन ग़ज़ल
वास्ता जब यहाँ दायरा हो गया।
रास्ता आपका दूसरा हो गया।
पूछते, देखते, सोचते, जानते,
सब यहाँ एक सा माज़रा हो गया।
वो निभाया नहीं जो किया वायदा,
झूठ ही जीत का पैंतरा हो गया।
हम अकेले चले थे कहीं राह पर,
मिल गया साथ जो आसरा हो गया।
थे नज़ारे जहाँ ख़ूबसूरत बहुत,
देख कर मन वहाँ बावरा हो गया।
कवि:
नवीन माथुर पंचोली
अमझेरा धार मप्र
पिन 454441
मो9893119724
गम पर ग़ज़ल
झूठी आस लिये हरदम।
निकले दूर सफ़र पर हम।
जतलाता है चहरा नम,
बाहर खुशियाँ,भीतर ग़म।
चाहत की पहचान यही,
जितनी ज़्यादा उतनी कम।
सबका है अपना - अपना ,
दुनियाँ में दिल का आलम।
आँसू जैसी लगती है,
फूलों पर ठहरी शबनम।
है सच्चाई जीवन की,
दीपक के नीचे का तम।
खूबसूरत गुनाह पर ग़ज़ल
वाह के साथ वाह कर लेता।
तो सभी से निबाह कर लेता।
देखता जब उसे कहीं छुपकर,
ख़ूबसूरत ग़ुनाह कर लेता ।
पास चलता जहाँ-जहाँ उसके,
साथ कुछ और राह कर लेता।
देख सब दूर के नज़ारों को,
तेज़ अपनी निग़ाह कर लेता।
काम आसान आज़ हो जाता,
जो किसी से सलाह कर लेता।
अवसर पर गज़ल
कहने से करना बेहतर।
रखना इसको अपनाकर।
जितने बीत गए पहले,
फिर से आयेंगे अवसर।
मुश्क़िल जो भी दाँव यहाँ,
लड़ना है अपने दम पर।
होगा दूर सफ़र जिसका,
ठहरेगा कैसे पल भर ।
उड़ना है पर फैलाकर,
जिनको छूना है अम्बर।
उतना बाहर निकलोगे,
जितना उतरोगे अन्दर ।
सोच पर गज़ल
हो तज़ुर्बा जो सही डूबने के बारे में।
बात छोटी ही सही सोचने के बारे में।
दूर आँखें भी वहाँ राह दिखाएगी सही,
सोच रक्खोगे अगर देखने के बारे में।
बात आपस में सभी होगी जहाँ खुलकर,
शर्म टूटेगी वहाँ बोलने के बारे में ।
मान जाएगा वही शख़्श तो आसानी से,
शर्त जिसकी ना रही रूठने के बारे में।
टालता है जो हमेशा ही हिदायत सबकी,
बाद पछतायेगा वो चूकने के बारे में।
कवि:
नवीन माथुर पंचोली
अमझेरा धार मप्र
पिन 454441
मो9893119724
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