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बचपन पर हिंदी कविता: बचपन पर कविता व Bachpan par shayari in Hindi

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खोता बचपन
खोता बचपन



कहां खो गया मेरा बचपन
कहां गई किलकोरी।
कहां सो गए सुख के सपनें
कौन सुनाए लोरी।।

खुला हुआ आकाश शीश पर
धरती बना बिछौना।
दुख के सागर में डूबा हूं
जीवन भर है रोना।
भटक रहा हूं द्वार -द्वार पर
क्या पाना क्या खाना।
पल भर मिली न सुख की छाया
आंसू पीकर सोना।

कौन प्यार करेगा हमसे 
दुलार भरी ठिठोरी।
क्या जाने जीवन बसंत को 
हम क्या जाने होरी।।

नए-नए परिधान पहनकर 
बच्चे जब आते हैं।
हम चिथड़ों से ढके हुए 
शर्मिंदा रह जाते हैं।
भांति -भांति के भोजन देखें
कहां कभी पाते हैं।
सब त्यौहार यहां पर आते 
आते हैं जाते हैं।

कोई कहीं पर थप्पड़ मारे 
दुत्कारे  बरजोरी।
कोई घृणा से देखे हमको 
कोई करे चिरोरी।।

ऐसे अपमानित होकर के 
कैसे जी पाऊंगा।
रोज ठोकरें खाते -खाते 
सहकर रह जाऊंगा।
तृष्कृत जीवन के ये आंसू 
कब तक पी पाऊंगा।
मात -पिता धर्म की गाथा
जग को क्या बतलाऊंगा।

सहानुभूति रखने वालों की
भाव भव्यता कोरी।
भूखे पेट जी जहां माणिक
जीवन बना अघोरी।

पैदा होते ही आशाओं के 
अंबार लगे।
दरवाजे पर खुशियों के
 बंदनवार लगे
लदीं किताबें हम पर
कैसे बलवान बने।
कुछ करने से पहले ही
हम पर अधिकार लगे।

दर्द हमारा कोई न समझे
यह कैसी लाचारी।
कहां खो गया मेरा बचपन 
कभी सुनी न लोरी।।


कवि एवं समीक्षक:
भास्कर सिंह माणिक                     
जनपद- जालौन, 
उत्तर- प्रदेश-285205
मो: 9936505493

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बचपन की यादें हमेशा हमारे दिल में बसी रहती हैं। वह मासूमियत, वह खुशियाँ, वह सपने... सब कुछ इतना खूबसूरत होता है। लेकिन जैसे ही हम बड़े होते हैं, ये यादें धुंधली होने लगती हैं। हमारे जीवन में नई चुनौतियाँ और जिम्मेदारियाँ आ जाती हैं और हम अपने बचपन की यादों को भूलने लगते हैं। लेकिन कभी-कभी कुछ पल ऐसे आते हैं जब हमें अपना बचपन याद आ जाता है और हमारी आँखों में खुशियों के आंसू आ जाते हैं।

ये कविता, बचपन की यादों को ताज़ा करने के लिए पर्याप्त हैं। बचपन की मासूमियत, खुशियाँ, और सपने.. ये सब कितने खूबसूरत होते हैं!

लेकिन आज बदलते हुए परिवेश ने, मोबाइल, ऑनलाइन गेम्स् व शिक्षा के बढ़ते हुए बोझ ने तो मानों जैसे बचपन की खुशियाँ ही छीन ली हैं।