ठिठुराती ठंड पर कविता | आधुनिक दोहे | राज के दोहे| दोहा छंद
सर्दी के इस कोप से, ठिठुरे सारे लोग।
सबसे ज़्यादा मार तो, वृद्ध रहे हैं भोग।।
महल देखकर झोपड़ी, देखो भरती आह।
बूढ़ी अम्मा ठंड से, उसमें रही कराह।।
रामू काका ठंड में, रहे रज़ाई खोज।
बूढ़ी काकी खाँसती, रहती है हर रोज़।।
छीन लिया अब ठंड ने, सूरज का भी ताप।
उस पर बैरी कोहरा, बना सभी का बाप।।
धूप गई ससुराल में, पीने लस्सी सूप।
धुंध निगोड़ी बन गई, देखो आज अनूप।।
कवि:
राजपाल यादव ‘राज’
गुरुग्राम, हरियाणा
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