सरस्वती वंदना | सरस्वती भजन | शारदा माँ वंदना | साहित्यिक हरियाणा | महेश कुमार हरियाणवी
(माँ सरस्वती वंदना)
वाणी, शारदा, वागेश्वरी, वीना पुस्तक धारिणी।
वाणी, वसुधा, शुक्लवर्ण, ज्ञानम भाग्य तारिणी।
वाणी, वसुधा, शुक्लवर्ण, ज्ञानम भाग्य तारिणी।
धरती पर थी मौन की चादर
सुरमई फिर आकाश हुआ।
खुशियाँ उस आँगन गुण गाएँ
जिसमें माँ तेरा वास हुआ।।
पँछी पवन संग गाती तलैया
ज्ञान के आगे बौना रूपया।
शब्द भेद तेरा अजब निराला
हीर से लीर लकीरों वाला।
देख कला का जटिल नमूना
भाग्य भी तेरा दास हुआ।
खुशियाँ उस आँगन गुण गाएँ
जिसमें माँ तेरा वास हुआ।।
कण्ठ विराजो आ माता मैया
अधर में डूब न जाए नैय्या।
ज्ञान का तुम प्रकाश जलाना
तेरी शरण में मेरा ठिकाना।
भक्त तेरा तुझे दिल से पुकारे
वंदनीय हर श्वास हुआ।
खुशियाँ उस आँगन गुण गाएँ
जिसमें माँ तेरा वास हुआ।।
चमक रही है दुनिया की माला
श्वेत कमल का भेद निराला।
मधुर-मधुर सा वीणा सुर गाए
भटके मन को राह दिखाए।
अभिमान तुम्हें रास न आया
सत्कर्मों से विकास हुआ।
खुशियाँ उस आँगन गुण गाएँ
जिसमें माँ तेरा वास हुआ।।
कवि:
महेश कुमार हरियाणवी
झूक, महेंद्रगढ़, हरियाणा।
9015916317
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