हरियाणा गीत | म्हारा हरियाणा | महेश कुमार हरियाणा | साहित्यिक हरियाणा
छोटा सा प्रदेश म्हारा,
न्यारी प्यारी बोली।
मिट्टी में दे शीश कमाएँ
मिट्टी में दे शीश कमाएँ
भर दे पसीना चोली।।
जंग, प्रेम में जीवित गाथा
गीता वाला सार कहाँ था।
सभ्यता यह सदियों पुरानी
सरस्वती पर सिंधु जाणी।
वैदिक काल की चाल यहाँ
मिले, धर्म-कर्म मिशाल यहाँ।
वेदव्यास और च्यवन जैसे
ऋषियों की वो टोली।।
छोटा सा प्रदेश म्हारा
न्यारी प्यारी बोली।
मिट्टी में दे शीश कमाएँ
भर दे पसीना चोली।।
आभीरों ने काश्त संभाली
आज तलक करते रखवाली।
हाथ कमाई करके चमके
कृषक के घर दाना खनके।
खड़ी बराबर नर के नारी
राष्ट्रवादी गूँज हमारी।
खानपान संग देसी गाना
कौशलता की रंगोली।।
छोटा सा प्रदेश म्हारा
न्यारी प्यारी बोली।
मिट्टी में दे शीश कमाएँ
भर दे पसीना चोली।।
खेल में जम प्रचम लहराएँ
बच्चे मैडल ख़ूब कमाएँ।
देश-विदेश का ख़्याल नहीं
घाट-घाट तिरँगा लहराएँ।
जहन में आई है आजादी
रणबाकुरों की शहजादी।
वन्देमातरम गाकर चलती
इन सैनिकों की गोली।।
छोटा सा प्रदेश म्हारा
न्यारी प्यारी बोली।
मिट्टी में दे शीश कमाएँ
भर दे पसीना चोली।।
खानपान शुद्ध देशी बाणा
दूध-दही का है हरियाणा।
हुक्के के संग भाईचारा
हराभरा सा गावँ हमारा।
उद्योगों में करते कमाई
मिलती देखी बड़ी बड़ाई।
बैठ अखाड़े बीच करें जन
खुशियों कि हमजोली।।
छोटा सा प्रदेश म्हारा
न्यारी प्यारी बोली।
मिट्टी में दे शीश कमाएँ
भर दे पसीना चोली।।
युवा कवि:
महेश कुमार हरियाणवी
झूक, महेंद्रगढ़, 123029
9015916317
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