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मन का भय

डर पर कविता | मन का भय | साहस पर कविता | महेश कुमार हरियाणवी | साहित्यिक हरियाणा

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मन का भय 


डरने वाले इस दुनिया में, 
डर के क्या कुछ पाएगा।
आसमान है खुला मगर, 
उड़ने वाला उड़ पाएगा।

औज़ार सभी हैं दुनिया में, 
पथ ये धुँधला जाते हैं।
जिसने कदम बढ़ाया आगे, 
राह वही बढ़ पाते हैं।।


नया पुराना, भेद बताना, 
बदल रहा रंग-रूप जमाना।
तेरा सपना तेरा बहाना, 
मंजिल तेरी तेरा ठिकाना।

जोख़िम में मेहनत होगी पर, 
रिस्क में आनंद आएगा।
आसमान है खुला मगर, 
उड़ने वाला उड़ पाएगा।।


तेरी सोच में पुष्प समाए, 
जो तू चाहे वो मिल जाए।
उम्मीदों के पँख लगे हैं, 
रोकने वाले रोक न पाए।

अंदाज तेरा तुझसे प्यारे, 
झिझका तो मर जाएगा।
आसमान है खुला मगर, 
उड़ने वाला उड़ पाएगा।।


सन्नाटों से डर मत जाना, 
धुँध में धुलकर ख़ौफ़ न खाना।
नजरों की एक सीमा है, 
तुमको सीमा पार है जाना।

जैसे-जैसे धूप खिलेगी, 
बादल खुद छट जाएगा।
आसमान है खुला मगर, 
उड़ने वाला उड़ पाएगा।।


काली-काली छाई घटाएँ, 
अंबर की है अलग अदाएँ।
बारिश भी गिरने को आई, 
धरती पे छपती परछाई।

ये सब मौसम के हैं नजारे, 
इन से ना बच पाएगा।
आसमान है खुला मगर, 
उड़ने वाला उड़ पाएगा।।


डरने वाले इस दुनिया में, 
डर के क्या कुछ पाएगा।
आसमान है खुला मगर, 
उड़ने वाला उड़ पाएगा।

औज़ार सभी हैं दुनिया में, 
पथ ये धुँधला जाते हैं।
जिसने कदम बढ़ाया आगे, 
राह वही चल पाता है।।


कवि:
महेश कुमार हरियाणवी                         
गाँव: झूक, महेंद्रगढ़, 123029
9015916317