बाँटने पर कविता | रिश्तों पर कविता | विनोद सिल्ला । हिन्दी कविता | साहित्यिक हरियाणा
हाथ हाथ को काट रहा है क्या होगा।
भाई भाई को बांट रहा है क्या होगा।।
भाई भाई को बांट रहा है क्या होगा।।
कटना बंटना रास रहा है उसको तो।
एक एक को छांट रहा है क्या होगा।।
शेर बकरियां एक घाट कैसे पीएं।
नाम शेर के घाट रहा है क्या होगा।।
खून लगा है छूरी पर भी भाई का।
उस छूरी को चाट रहा है क्या होगा।।
मुश्किल से मेटी थी खाई नफरत की।
तूं उसको फिर पाट रहा है क्या होगा।।
बाजारों में नहीं पसीना बिकता है।
चकाचौंध में हाट रहा है क्या होगा।।
सिल्ला अमन चैन से रहना अच्छा है,
आचरण ही खर्राट रहा है क्या होगा।।
कवि:
विनोद सिल्ला
फतेहाबाद, हरियाणा
***
Social Plugin