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जीवन के दोहे

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साहित्यिक हरियाणा

(तन धोया मन रह गया)


पाप  करो  दिन  रात  तुम,  धोए गंगा स्नान।
तन  धोया  मन रह गया, मान भले मत मान।।

काया  कंचन  सी  हुई, लगा  नहा  धो  छैल।
तन धोया क्या धो लिया, मानव मन का मैल।।

तन उजला मन मैल का, सही नहीं यह कार।
मन जब उजला हो गया, उजला सब संसार।।

पाप  कर्म  धो  स्नान  से,  ढंग  बड़ा आसान।
मन  समझाए  आपणा,  मानव  मन  शैतान।।

पाप  कर्म  की  कीच को, धोने का यह खेल।
व्यर्थ  कर्म  में  हो  रहा, मानव  धक्कम पेल।।

गंगा  जमुना  बह  रही,  सबके निज घर द्वार।
मदद  आपदा  में  करो,  सबसे  उत्तम  कार।।

सिल्ला उजला रह सदा, कर्म वचन मन साध।
सरपट  जीवन  का  सफर, दूर रहे सब बाध।।

कवि:    
विनोद सिल्ला                                 
फतेहाबाद, हरियाणा

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